Monday, July 25, 2011

कातिल रात..!


संकटों से गुजरी है रात
फिर नयी सुबह आई है
कही खुशहाली का सुकून है
कहीं अपनों ने जान गवाई है

भगवान्, ये राक्षसों की सेना
क्यूँ यहाँ भिजवाई है
तेरे ही दामन के निचे
इन्होने की ये शैतानी है

चीख रहे है बूढ़े बच्चे
लाशों को भी ये तड्पाई है
एक इन्सान को देखो
आज टुकडो में गिनवाई है

सुबह की रौशनी में अब
लाशें अपनों की पहचानी है
अब तो जागो दुनियावालो
देखो ना ये कैसी हैवानी है

क्या थी हमारी गलती
क्यूँ हमने ये पाया है
घर का चिराग देखो आज
बुझकर घरपर आया है

कल खेल रहा था गोद में
आज लाश बनकर आया है
माँ को मिलने को बेटा आज
कफ़न में लिपट कर आया है

रोती बिलगती माएँ
बेटे के लिए तड़प रही है
उजड़ी हुई गोद को
न जाने कैसे समेट रही है

उजड़ी हुई गोद को
न जाने कैसे समेट रही है.....

--स्नेहल

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