Tuesday, January 18, 2011

ये कैसा मंजर


मंजर है ये कैसा मंजर..?
हरतरफ है अश्को का समंदर
मंजर है ये कैसा मंजर..?

तुमने जो दिलसे वादा किया था
तुमसे ही दिल को सुकून वो मिला था
राहें कही खो गयी है अब वोह,
मिलते थे हम जहाँ पे अक्सर..
मंजर है ये कैसा मंजर..?
मंजर है ये कैसा मंजर..?

दिन वोह बड़े हसीं लगते थे
जब हम तुम यहाँ मिलते थे
प्रेम की गलियां खोयी हुई है,
खो गया है मेरा हमसफर..
मंजर है ये कैसा मंजर..?
मंजर है ये कैसा मंजर..?

बादल ऐसे गहराएं है
काले साये लहरायें है
तन्हाई में अब रुसवा होकर,
अश्क खड़े है आकर दरपर..
मंजर है या कैसा मंजर..?
मंजर है या कैसा मंजर..?

तेरे बिना ना कोई है मंजिल
आके लग जा गले से ऐ दिल
ढूंढ़ रही है तुझको नजरें
फैला दे खुशियाँ फिर आकर
मंजर है ये कैसा मंजर..?
मंजर है ये कैसा मंजर..?

हरतरफ है अश्को का समंदर
मंजर है ये कैसा मंजर..?

-- स्नेहल

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