बेईमानी से भरपूर है
स्वार्थ से ही बनता है
जोरशोर से हर जगह
बिकता भ्रष्ट - आचार है
देश की ना चिंता है
पैसों का बस विचार है
देश का हो कुछ भी
बेचना भ्रष्ट - आचार है
जनता तो भोली है
इनके सामने लाचार है
जहा जाओ वहां बस
मिलता भ्रष्ट - आचार है
अपनों के खयालो में
डूबा यहाँ संसार है
फिकर है किसकी बस
करना भ्रष्ट - आचार है
करना और खाना है
देश को दिखाना है
जेल में जाकर भी
भ्रष्ट - आचार का गुणगाना है
ना कोई सीमा है
ना किसीपे लगाम है
सालों से बन रहा
यहाँ भ्रष्ट - आचार है
कोई जानता नहीं
ना किसी को पता है
कब ख़राब होकर ये
फेकना भ्रष्ट -आचार है
--स्नेहल
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